हर रोज एक नई किताब लिखता हूं कुछ अपने और अपनो के बारे में लिखता हू। कहानी नई उम्मीद से शुरु करता हूं खरा किसी की उम्मीद पर उतरता हू। बैठ कर दूर अकेले उसका अन्त करता हूं लिखता हूं ,मिटा देता हूं सोचता हूं ,नही लिखता हूं क्यों सब, सब को बताया जाय हर बात को आम क्यों बनाया जाय बस यूँही एक नई किताब रोज लिखता हूं कुछ अपने और अपनो के बारे में लिखता हूं।
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