हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ! पतझड़ का भी शुक्रिया परिंदों के घर हुए तैयार कहाँ जाते तिनके चुन ने अगर होती सदा बहार । लहरों से खेलती कश्तियाँ साहिल पे आ लगती पार समंदर में जो दफ़्न हो गए उन तूफ़ानों का भी आभार । सूरज सा उजला, खिलता नया हर दिन रंगों और रोशनी का अम्बार पर दिल को लुभाता वो अंधेरा भी जिसमें छुपा है कोई राज़दार ।
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हर बगीचे में एक ऐसा माली रखो जो टूटे पत्तो को ना आग लगाये करे इकठ्ठा और उसकी खाद बनाये फिर मिलने की एक उम्मीद जगाये। शायद फिर ना पतझड आये।।।